
मेरे प्यारे पूज्य पिताजी, सादर नमन। आज उनका जन्मदिन है, आज होते तो हर्षोल्लास से मनाते। मेरे एसीपी बनने की प्रतीक्षा करते दो वर्ष पूर्व छोड़कर चले गये। मुझे याद है वो बीमार थे और मैं छुट्टी लेकर उनके पास अस्पताल जाकर बैठ गया तो बोले योग साहब (मुझे इसी नाम से पुकारते थे) मेरी चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है, यहाँ सब ठीक है , नौकरी पहले है, काम का हर्ज़ा नही होना चाहिए। कब बनेगा एसीपी ये हमेशा पूछते थे, मैं कहता पिताजी अभी मुझसे सीनियर लोग नहीं बने, नंबर आते ही बन जाऊँगा तो कहते लेकिन जल्दी होना चाहिए।
पिताजी को पढ़ाई में बहुत रुचि थी। दसवीं करके फौज़ में भर्ती हो गए थे। पर उसके बाद उन्होंने डबल MA किया । पिताजी का हस्तलेखन बहुत अच्छा था। डायरी लिखते थे। अखबारों की कटिंग निकालकर रखते थे। राजनीति में रुचि थी और ख़ूब बढ़िया बहस भी कर लेते थे। विषय चाहे गाँव की राजनीति का हो चाहे अंतरराष्ट्रीय हो, सब पर अच्छी पकड़ थी उनको।
क्रिकेट को दीवानगी की हद तक प्यार करते थे। मुझसे अक्सर सचिन को लेकर प्यार भरी तकरार करते थे। वज़ह थी उनके पसंदीदा खिलाड़ी सहवाग से तुलना😀। वो चाहते थे कि सचिन के रिकॉर्ड अगर सहवाग नहीँ तो कोहली तोड़ दे। कहते थे ये कोहली भी लंबा खींच नहीं पायेगा लगता है । मुझे याद है किस तरह 1986 के ऑस्ट्रलेशिया फाइनल में चेतन शर्मा की आख़िरी गेंद पर मियाँदाद के लगे छक्के पर सर पकड़ कर बैठ गए थे और बोले थे कि देखना अब ये पाकिस्तानी टीम को हम मुश्किल हरा पायेंगे। उन दिनों जब मैच फिक्सिंग का किसी को मालूम नहीं था तो अक्सर मैं, पिताजी औऱ मेरा छोटा भाई साथ मैच देखा करते थे , औऱ जब सचिन के आउट होते ही अजहर, अजय जडेजा, मोंगिया, प्रभाकर जैसे खिलाड़ी मैच को डुबो देते थे तो पिताजी बोलते थे कि ये बिक गए हैं।
हॉकी मैच भी बड़ी शिद्दत से देखते थे।
पिताजी upsc परीक्षा में रुचि रखते थे, बोलते थे तू तो मेरा अर्जुन था कुछ करना चाहिए था, आख़िर बड़ा भाई फ़ौज़ में अफ़सर था ही। आख़िरी समय तक भी कईं बार कह बैठते थे, अरे पढ़ाई ठीक चल रही है 😀 , मैं कहता हाँ पिताजी अच्छी चल रही है बच्चों की। मैंने नौकरी में रहकर दिल्ली विश्वविद्यालय से जब एल एल एम किया तो उनको बहुत अच्छा लगा , कहते अब डी ( पी एच डी) और करके डॉक्टर बन जा।
खाने का बहुत शौक था पिताजी को, घी, दूध और मीठा, जो हमारे यहाँ का मूलभूत आहार है, उनको भी बहुत पसंद था। हम सबके पोषण का भी विशेष ध्यान था, कहते थे अच्छा खाओ और पढ़ो। फैशन या फिल्मो पर पैसे फूँकना पागलपन है। इस दौर में भी जब हम बच्चों के साथ मूवी देखकर आते तो पूछते कितने की टिकट है आजकल, तो मैं कहता पिताजी अब तो 26 रुपये की हो गयी, ये तो मालूम नही विश्वास कितना होता होगा उनको लेकिन कहते थे ज़्यादा है ये भी, इनमे कौन कोई दिलीप कुमार है या मधुबाला जो पैसे फूँकना।
आज पिताजी की याद आना स्वाभाविक है। रोज़ याद रहते ही हैं हर पल। उनके जन्मदिन पर मैं उनको ख़ुशी ख़ुशी याद करना चाहता हूँ। पिताजी आपके एसीपी बेटे और पूरे परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की बधाई। आप जहाँ भी हों खुश हों बस यही कामना है और प्रार्थना ◆◆◆
यह लेख श्री योगेन्द्र खोखर की फ़ेसबुक वॉल से लिया गया है ,एक पुत्र के ज़ज़्बात पिता के संबंध में कितने हृदयस्पर्शी होते हैं पढ़कर पता चलता है ।