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पर्यावरण संरक्षण को लेकर अधिवक्ताओं ने जताई चिंता, किया पौधारोपण

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मुरादाबाद। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज कचहरी प्रांगण स्थित एस.पी. गुप्ता सभा भवन के द्वितीय तल के चैंबर नं. 50 में “पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता एवं महत्व” विषय पर एक विचार गोष्ठी एवं पौधारोपण कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया।

विचार गोष्ठी के दौरान वक्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण की वर्तमान आवश्यकता पर गंभीर चिंता जताई और आम जनमानस से प्रकृति के प्रति जागरूक होने का आह्वान किया।

तंजीम शास्त्री एडवोकेट ने अपने संबोधन में कहा, “पौधारोपण के साथ-साथ हमें अपने घरों और परिवेश में पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करनी चाहिए।”

अजय पाल एडवोकेट ने कहा, “विकास की अंधी दौड़ में हम पर्यावरण को पीछे छोड़ते जा रहे हैं, जिससे कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम पेड़-पौधों को बचाकर इस असंतुलन को रोकें।”

विशिष्ट अतिथि त्रिलोकचंद्र दिवाकर एडवोकेट ने चेताया, “यदि मानव चाहता है कि उसकी आने वाली पीढ़ियाँ शुद्ध हवा में सांस लें, तो उसे पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। वरना मानव जाति के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा।”

मुख्य अतिथि सुरेश सिंह एडवोकेट ने कहा, “शुद्ध जल और ऑक्सीजन मानव जीवन के लिए अनिवार्य हैं, और यह तभी संभव है जब हम पेड़-पौधों को सहेजें। यह हमारा नैतिक और मानवीय कर्तव्य है।”

कार्यक्रम अध्यक्ष विवेक कुमार ‘निर्मल’ एडवोकेट ने भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा, “हमारे वेदों और ऋषियों ने पर्यावरण संरक्षण को सदा सर्वोपरि माना है। पीपल, बरगद और तुलसी जैसे पौधों को पूजनीय बनाकर सनातन धर्म ने संरक्षण का संदेश जन-जन तक पहुँचाया है।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विवेक कुमार “निर्मल” ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में श्री सुरेश सिंह एडवोकेट और विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री त्रिलोकचंद्र दिवाकर एडवोकेट मौजूद रहे। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन अधिवक्ता श्री आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ” ने किया। इस अवसर पर अधिवक्ता आसिफ आतिक, विजय कुमार, मौ. नईम, मौ. इकबाल, साजिद अली, आसिफ सैफी, मौ. अमन, मौ. आरिफ खान, शाइस्ता, रानी साहिबा, फिरासत हुसैन, अरशद, कमल वारसी सहित अन्य अधिवक्तागण उपस्थित रहे। कार्यक्रम की सफलता में अकिब सिद्दीकी और ध्रुव बाजपाई का विशेष योगदान रहा।

कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल जागरूकता फैलाना था, बल्कि सभी को यह याद दिलाना भी था कि प्रकृति के बिना हमारा अस्तित्व अधूरा है।

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