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विश्व भर में प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की 56 वी पुण्यतिथि विश्व शांति दिवस के रूप में मनाई गई।

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रिपोर्ट: हरीश कुमार मुंदेरिया/ स्टेट हेड मध्य प्रदेश

पचोर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पचोर के द्वारा ब्रह्माकुमारी वैशाली दीदी ने संस्थान के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की विशेषता एवं उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रह्मा बाबा ने नारी को शक्ति बनाने का ऐसा संकल्प किया कि सारी जमीन-जायजाद बेचकर ट्रस्ट बनाया, संचालन की जिम्मेदारी सौैंपी और खुद हो गए पीछे- 18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में अव्यक्त हुए थे ब्रह्मा बाबा- ब्रह्मा बाबा की 56वीं पुण्य तिथि आज- विश्वभर में विश्व शांति दिवस के रूप में मनाई जाएगी- मुख्यालय आबू रोड,शांतिवन में देश-विदेश से पहुंचे 15 हजार से अधिक लोग आबू रोड, राजस्थान स्थित नारी शक्ति का विश्व का सबसे बड़ा और विशाल संगठन की नींव रखने वाले ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के संस्थापक ब्रह्मा बाबा की 18 जनवरी को 56वीं पुण्य तिथि मनाई जा रहीं हैं। बता दें कि 18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारीज़ के साकार संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा बाबा ने संपूर्णता की स्थिति प्राप्त कर अव्यक्त हो गए थे। उनके अव्यक्त होने के बाद संस्थान की बागडोर पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने संभाली। बाबा की त्याग-तपस्या का परिणाम है कि खुद पीछे रहकर नारी शक्ति को आगे बढ़ाया और आज पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति अध्यात्म का परचम फहर रहा है। सन1937 प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक दादा लेखराज कृपलानी जिन्हें सभी प्यार से ब्रह्मा बाबा कहकर पुकारते हैं। 18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में संपूर्णता की स्थिति प्राप्त कर बाबा अव्यक्त हो गए थे। लेकिन उन्होंने अपने जीवन में जो मिसाल पेश की उसे आज भी लाखों लोग अनुसरण करते हुए राजयोग के पथ पर आगे बढ़ते जा रहे हैं।

संस्थान की मुख्य शिक्षा और नारा है- स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन और नैतिक मूल्यों की पुनस्र्थापना।60 वर्ष की उम्र में रखी बदलाव की नींव- दादा लेखराज (ब्रह्मा बाबा) बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ईमानदार थे। उन्हों परमात्म मिलन की इतनी लगन थी कि अपने जीवन काल में 12 गुरु बनाए थे। वह कहते थे कि गुरु का बुलावा मतलब काल का बुलावा। 60 वर्ष की आयु में वर्ष 1936 में आपको दुनिया के महाविनाश और नई सृष्टि का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद आपने परमात्मा के निर्देशन अनुसार अपनी सारी चल-अचल संपत्ति को बेचकर माताओं-बहनों के नाम एक ट्रस्ट बनाया, उस समय संस्थान का नाम ओम मंडली था। वर्ष 1950 में संस्थान के माउंट आबू स्थानांतरण के बाद इसका नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय पडा।ब्रह्मा बाबा ने माताओं-बहनों को जिम्मेदारी सौंपकर खुद कभी पैसों को हाथ नहीं लगाया। यहां तक कि उनमें इतना निर्माण भाव था कि खुद के लिए भी कभी पैसे की जरूरत पड़ती तो बहनों से मांगते थे। बाबा कहते थे कि नारी ही एक दिन दुनिया के उद्धार और सृष्टि परिवर्तन के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाएगी। दुनिया का एकमात्र और सबसे बड़ा संगठन- ब्रह्माकुमारी संस्थान नारी शक्ति द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा और एकमात्र संगठन है। यहां मुख्य प्रशासिका से लेकर प्रमुख पदों पर महिलाएं ही हैं। नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है । हाल ही एक कार्यक्रम में पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी इस संगठन की सफलता और विशालता को देखते हुए कहा था कि यहां नारी शक्ति ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि नारी को मौका मिले तो वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।140 देशों में पांच हजार सेवाकेंद्र संचालित-संस्थान के इस समय विश्व के 140 देशों में पांच हजार से अधिक सेवाकेंद्र संचालिता हैं। साथ ही 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित रूप से तन-मन-धन के साथ अपनी सेवाएं दे रही हैं। 20 लाख से अधिक लोग इसके नियमित विद्यार्थी हैं जो संस्थान के नियमित सत्संग मुरली क्लास को अटेंड करते हैं। साथ ही दो लाख से अधिक ऐसे युवा जुड़े हुए हैं जो बालब्रह्मचारी रहकर संस्थान से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे और सेवा के लिए राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के तहत 20 प्रभागों की स्थापना की है।

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