
दिल्ली स्थित माता कालका जी मंदिर में सामूहिक भंडारे का आयोजन ।
नई दिल्ली/दीपक शर्मा
धार्मिक अनुष्ठानों में भक्त एवं भक्तजनों के द्वारा प्राय समाज में मंदिरों व अन्य धार्मिक स्थलों में भंडारे तो बहुत आयोजन होते हैं लेकिन केवल सेवार्थ और भक्ति भावना का कई जगह आभाव मिल जाता है,क्योंकि अव्यवस्था भी कई बार देखने मिलती है ,परंतु कुछ भक्तगण ऐसे होते हैं जो भक्ति भावना से इतने ओत-प्रोत होते हैं,कि वह भंडारे का भोजन,इस प्रकार प्रसाद रूप में वितरित करते हैं खिलाने वाले अथवा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों तृप्त हो जाते हैं
भोजन कराने की परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है. अन्न दान करना आज के समय में भंडारे के रूप में प्रचलन में आया है. भंडारे लगाकर लोग गरीब और जरूरतमंदों को भोजन कराते हैं प्राचीन काल में राजा महाराजा कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते थे. उसके बाद राजा अपनी प्रजा में धन, वस्त्र ,भोजन, फल आदि का दान करते थें.भोजन कराने की परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है. भंडारे लगाकर लोग गरीब और जरूरतमंदों को भोजन कराते हैं. भोजन कराने से शरीर और आत्मा दोनों को संतुष्टि मिलती है.

इसी प्रकार का एक सामूहिक भंडारा दिल्ली के माता कालका जी मंदिर में देखने को मिला । जोकि श्री राम भगत जी बाबा मोहन राम मंदिर लाला खेडली ( सोहना गुड़गाँव ) द्वारा एवं उनकी भक्तजनों,सहयोगियों के द्वारा किया गया जहां की कालकाजी मंदिर स्थित समस्त जनसमूह ने पार्किंग में उपरोक्त भंडारे का आनंद लिया,भंडारे को करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे की मुस्कान और समर्पण भावना अत्यंत भावविभोर करने वाली थी ,जहां की कृष्ण खटाना, राहुल खटाना ,राजेंद्र भगत जी ,अंतराम भगत जी ,अशोक भगत जी ,भूरे भगत जी, अजीत भगत जी ,सुंदर भगत जी इत्यादि की सेवा माता कालका के चरणों मे समर्पित रही,माता के भक्त स्वयं अपने हाथों से प्रसाद वितरित कर रहे थे। भक्तगण एक बड़ी गाड़ी में कुछ जन समुदाय के साथ खेड़ली सोहना गुड़गांव से आए थे ।जहां उन्होंने गाड़ी में पूरी,सब्जी,लड्डू,चना आदि सामग्री का प्रसाद वितरण समस्त जन समुदाय को किया ,जहां की श्री राम भगत जी द्वारा स्वयं अपने हाथों से प्रसाद वितरण किया गया उपरोक्त भंडारे मैं भंडारा कर रहे भक्त समुदाय को देखकर पता चलता है, कि हिंदू समाज में भंडारे के प्रसाद वितरण का कितना महत्व है के लोग नंगे पांव भक्त समुदाय को भंडारा वितरण करते हैं जिससे पाकर व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों संतुष्ट हो जाते हैं
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य दान के विषय मे –
- महाभारत के दानवीर कर्ण को महादानी के रूप में जाना जाता है जिसे आज भी समाज महाभारत के पात्र के रूप में जानता है और उसकी दान करने की प्रवृत्ति के कारण समाज आज भी करण को बेहद सम्मानजनक रूप में देखता है
2.शास्त्रों में बताय गया है कि संसार में सबसे बड़ा दान अन्न दान है। अन्न से ही यह संसार बना है और अन्न से इसका पालन हो रहा है। अन्न से शरीर और आत्मा दोनों की ही संतुष्टि होती हैं। इसलिए अन्न दान सभी प्रकार के दान से उत्तम है।
3.पद्मपुराण के सृष्टिखंड में एक कथा का उल्लेख किया गया है। इसमें ब्रह्मा जी और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन काल में जो भी दान करता उसे वही वस्तु मृत्यु के बाद परलोक में प्राप्त होता है। राजा श्वेत तपस्या के बल पर ब्रह्मलोक पहुंच गए लेकिन अन्न दान नहीं करने के कारण उन्हें भोजन नहीं मिला।
4.एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव पृथ्वी पर पधारे और एक कंजूस विधवा स्त्री से दान मांगा। स्त्री उस समय उपले बना रही थी। उसने कहा की वह अभी अन्न नहीं दे सकती क्योंकि वह उपले बना रही है। ब्राह्मण रूपी शिव ने हठ किया तो स्त्री ने गोबर उठाकर ब्राह्मण को दान दे दिया। मृत्यु के बाद जब वह स्त्री परलोक पहुंची तो उसे भोजन के लिए गोबर मिला। जब स्त्री ने इसका कारण पूछा तो पता चला कि उसने जो दान में गोबर दिया था यह उसी का परिणाम है। श्री राम भगत जी खेड़ली सोना गुड़गांव द्वारा किया गया उपरोक्त भंडारा हिंदू समाज में बहुत अच्छा संदेश देने के लिए उद्धरण बन सकता है ऐसे कार्यों से समाज में दान शीलता की प्रवृत्ति बढ़ती है ◆◆◆