
रिपोर्ट: हरीश कुमार मुंदेरिया/ स्टेट हेड मध्य प्रदेश
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय एवं ग्राम कालीयदेह वासियों के संयुक्त तत्वाधान में सप्त दिवसीय श्रीमद् भगवत गीता प्रवचन आयोजित किये जा रहे है। जिसके चौथे दिन संसार की उत्पत्ति पालना एवं परिवर्तन का रहस्य समझाया श्रीमद् भगवत गीता में संसार की तुलना एक पीपल के वृक्ष से की गई है।

संसार एक उल्टे वृक्ष के समान है। जिसका बीज ऊपर और विस्तार नीचे है जिस प्रकार वृक्ष की पहले उत्पत्ति फिर पालना, विनाश होता है। वैसे ही इस सृष्टि की भी स्थापना पालना और विनाश होता है। इस संसार रूपी वृक्ष का जो बीज है वह परमात्मा है, ब्रह्मा मुख्य शाखा और वेद पत्ते हैं। परमात्मा इस सृष्टि रूपी कल्पवृक्ष का बीज है जो सभी वेद शास्त्रों का ज्ञाता है। इस संसार की जब उत्पत्ति हुई तब यह दुनिया स्वर्ग थी, जहां एक धर्म था और राधे कृष्ण दो पत्तों के रूप में थे,आदि सनातन देवी देवता धर्म था लेकिन धीरे-धीरे विस्तार होते-होते यह जड़-जडीभुत हुआ और द्वापर युग में अनेक धर्म का आगमन हुआ और क्योंकि आते आते सत्य धर्म लुप्त हो गया साथ ही भारतीय संस्कृति भी धीरे-धीरे दूषित होती जा रही है। ऐसे धर्मग्लानि के समय में गीता में दिए गए वचन के अनुसार परमात्मा बीज का अवतरण होता है तब एक सत्य धर्म की स्थापना स्वयं परमात्मा कलयुगी दुनिया के अंत में आकर करते हैं। परमात्मा बीज रूप जो इस संसार से ऊपर परमधाम मे निवास करते हैं। जिस तरह बीज को धरती में डाला जाता है तब उसकी उत्पत्ति होती है उसी तरह परमात्मा को भी इस संसार का उद्धार करने के लिए धरती पर आना पड़ता है। एवं ब्रह्मा जी के द्वारा नई सतयुगी सृष्टि की स्थापना कराते है। ब्रह्मा जी के चार मुख दिखाएं है अर्थात निराकार परमात्मा शिव ब्रह्मा जी के द्वारा चारों ही दिशाओं में ज्ञान का प्रकाश फैलाते है। विष्णु अर्थात जिसके अंदर विष का एक अणु भी ना हो। शंकर अर्थात जो हमेशा सत का संग करता हो। वर्तमान समय मनुष्य अपना समय क्षणभंगुर भोगों को भोगने में नष्ट कर रहे हैं । उक्त विचार ज्ञानवत्ता योगशक्ति ब्रम्हाकुमारी सुरेखा दीदी ने श्रीमद भगवत गीता प्रवचन के चौथे दिन व्यक्त किये। कालियादेह सहित आस-पास के गांव के श्रद्धालुओं ने भाग लेकर गीता प्रवचन का आनंद लिया।
